Deep Thought

"A man would do nothing, if he waited until he could do it so well that no one would find fault with what he has done"
- Cardinal Newman

Saturday, September 28, 2013

ठंडे पाओं

बारिश के पानी में
फिर ना जाने क्यू
हाथ गरम और
पाओं ठंडे पड़ गये
सोचा फिर कोई नया खेल चला है तुम्हारा
ठंडा गरम, गरम ठंडा
मुड़के देखा पीछे तो कोई था नही
बस कुछ पेरो के निशान
कुछ नरम सी आहटे
दो चार और थोड़ी बातें
बेवफाह तुम नही
पर यादें हैं तुम्हारी
मनचाही अपने मन की करती हैं
जब मन करता है आ जाती हैं
यूही उठकर चली जाती हैं
गढ़ी की टिक टिक
या बारिश की टिप टिप
दोनो तुम्हारे नाम हैं
फिर सीधे पाओं चली
देखा एक धुंधली सी आस है आगे कोई
आँखो का कोहरा है
या मन का विश्वास है
आगे चलने लगी तो पाया
पाओं फिर ठंडे पड़े और हाथ गरम
झूठ कहा था नही आ रहे
अब तो तुम्हारे झूठ सच से ज़्यादा मीठे लगने लगे हैं
खुश्बुओं से कितने महेकाओगे आशियाने को
अछा अब बस भी करो
ये बारिश भी तुम्हारी साजिश है ना
अब बस भी करो
और उस आस ने हाथ थाम लिया
फिर पाओं ठंडे पड़े और हाथ गरम
लेकिन इस बार बारिश को नही कोसा
क्यूंकी अब वजह थे तुम

Wednesday, September 25, 2013

I Rise!



Underneath the oceans
sinking in the depths
when the world abandons
I think
when shall the right time come? 
when shall I rise again?

Waiting desperately for some years
which now appears like decades
the water has gone thick
Its time I risk it all
I say to myself
I shall rise soon! 

And then there's no story
without hurdles and hindrances
the soul shakes from within
Let this be a phase not stage
'This shall pass too'
I will rise soon! 

That night I became
my own exorcist
letting out the evil spirits
a crater left for filling now
lets start it over
Now I can rise again!

Then teeth dont bite
then nails dont scratch
then tears dont heal
just in the desperation
every piece of me
makes one sound
'I rise, I rise now! 

Picture Courtesy- Hardik Photography

Tuesday, September 10, 2013

कुछ समान


कल तुमने कुछ समान माँगा था अपना
आज मैं माँग रही हू
इतना हक़ तो है ना?
हो सके तो लौटा देना


उस रत बिखरा हुआ काजल
तुम्हारे कमीज़ से मला था
वो कमीज़ रख लो
हो सके
तो वो काजल के धब्बे लौटा देना


एक हरा कुर्ता बड़े प्यार से दिया था तुम्हे
जो दरवाज़े की कुण्डी में आकर
फट गया था कौने से
याद है, सीला था मैने उसे
उसी से मिलते झुलते हरे रंग के धागे से
वो कुर्ता रख लो
हो सके
तो वो हरा धागा लौटा देना


पिछली बरसातो में
तुम्हारे ही तौलिए से
सिर सुखाया था मैने अपना
कुछ बाल टूटकर ज़मीन पर गिरे थे
वो तौलिया रख लो
हो सके
तो वो टूटे बाल लौटा देना


कल तुमने कुछ समान माँगा था अपने
आज मैं माँग रही हू
इतना हक़ तो है ना
हो सकते तो लौटा देना

Tuesday, September 3, 2013

Dil dhoondta hai..

kitni raatein beet gayi
gin rahe ho na tum? 
mere haalato pe haste hoge na tum?
par aaj bhi
dil dhoond raha hai
un rangeen raato ko
fir un taaro ko

sheeshe mein dekh itminaan se
sochte hoge na?
haule haule bikhar rahi hu? 
par aaj bhi
dil bataur raha hai
toote hisso ko
aage badhne ki chah ko

baarish ki boondo se nafrat ho gayi hogi? 
kyu? harr boond yaad dilati hai meri? 
darwaza band karke duniya se bekhabar ho jate hoge? 
par aaj bhi
baarish ko utna hi sarahti hu main
tumhari nahi
jeene ki yaad dilati hain ye boonde

in sardiya bhi haath garam the tumhare? 
ya bistar ki silvato mein dhoond rahe the mujhe? 
fir razai aansuo se geeli ki hogi? 
par aaj bhi
mann mazboot kar rakha hai
dekha? sardiya bita li na tumhare bina

haan, kabhi kabar
dil intzaar karta hai darwaze ki chaukhat par
bechain hota hai 
fir ladkhadane chahta hai
yaado mein doobne ka bhi jee karta hai
par aaj bhi
dil tumhare bina saans le raha hai
par aaj bhi
dil dhoondh raha hai
tumhe nahi.. kisi aur ko
kyunki dil fir pyaar mein padna chahta hai

Picture Courtesy- Hardik Photography