Deep Thought

"A man would do nothing, if he waited until he could do it so well that no one would find fault with what he has done"
- Cardinal Newman

Saturday, September 28, 2013

ठंडे पाओं

बारिश के पानी में
फिर ना जाने क्यू
हाथ गरम और
पाओं ठंडे पड़ गये
सोचा फिर कोई नया खेल चला है तुम्हारा
ठंडा गरम, गरम ठंडा
मुड़के देखा पीछे तो कोई था नही
बस कुछ पेरो के निशान
कुछ नरम सी आहटे
दो चार और थोड़ी बातें
बेवफाह तुम नही
पर यादें हैं तुम्हारी
मनचाही अपने मन की करती हैं
जब मन करता है आ जाती हैं
यूही उठकर चली जाती हैं
गढ़ी की टिक टिक
या बारिश की टिप टिप
दोनो तुम्हारे नाम हैं
फिर सीधे पाओं चली
देखा एक धुंधली सी आस है आगे कोई
आँखो का कोहरा है
या मन का विश्वास है
आगे चलने लगी तो पाया
पाओं फिर ठंडे पड़े और हाथ गरम
झूठ कहा था नही आ रहे
अब तो तुम्हारे झूठ सच से ज़्यादा मीठे लगने लगे हैं
खुश्बुओं से कितने महेकाओगे आशियाने को
अछा अब बस भी करो
ये बारिश भी तुम्हारी साजिश है ना
अब बस भी करो
और उस आस ने हाथ थाम लिया
फिर पाओं ठंडे पड़े और हाथ गरम
लेकिन इस बार बारिश को नही कोसा
क्यूंकी अब वजह थे तुम

2 comments:

  1. Awesome aavika..matlab tusi ta chaa gae guruu..:D

    ReplyDelete
  2. @Kamal pandey
    arre shukriyaa shukriyaa! :)
    fan toh par main teri hu.. :D

    ReplyDelete